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सोमवार, 24 नवंबर 2014
मेरा बचपन
मेरा बचपन
किसी ने सच कहा है बीता हुआ समय कभी लौट कर नहीं आता ।सब की तरह मेरा भी बचपन वापस नहीं आएगा ।पर पुरानी यादे ताजा करने के लिए मेरे लिए इससे अच्छा माध्यम कुछ और नहीं है इसलिए अपनी बात मै अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने दोस्तों एवं स्नेहीजनों के बीच रख रही हु ।मेरा जन्म मेरे माता पिता के लिए किसी उत्सव से कम नहीं था ,हर माता पिता केलिए संतान का होना किसी उत्सव से कम नहीं होता ।कहते है मेरे जन्म के समय मेरे परिवार और एक नर्स के बीच ये शर्त लगा था की लड़का ही होगा और मेरे परिवार का मत लड़कीपर टीका हुआ था ।हमेशा की तरह यह वही बात और जमाना ही रहा जहा लड़की जन्म लेने पर नाक कान सिकोड़ा जाता रहा है पर मेरे परिवार की मानसिकता इन सब बातो से अलग रही एक लड़की के रूप में मेरा जन्म हुआ ,जिस नर्स ने शर्त लगाया वो फिर कभी सामने ही नहीं आई थी ।पापा ने मेरे जन्म से पहले ही टेलर के पास बैठ कर मेरे लिए ढेर सारे कपडे पहले से ही बनवा लिए थे ।उनको यकीन था की उनके यहाँ लड़की का ही जन्म होगा ।
एक भाई के बाद बहन का आना सब के लिए ख़ुशी का माहौल ले आया था ।मेरे माता पिता के कहे अनुसार मेरे आने के बाद ही वे तरक्की में रहे ।कह्ते है कालोनी में मै सब की चहेती हुआ करती ।कालोनी के छोटे बड़े सभी लोग मुझसे बेहद प्यार किया करते ।सब बारी बारी से मुझे पाया करते ।जब मै तीन माह की हुई तो कहते है मै दूध पी कर सोई तो मै दो दिन तक उठी ही नहीं ।पुरे कालोनी में मातम सा छा गया था ।अस्पताल के सामने काफी भीड़ लग गया था ।डॉ समझ नहीं पा रहे थे की मुझे हुआ क्या है ?इसी दौरान जिस नर्स ने मुझे कभी न देखने की कसम खायीथी वो वहा आ कर घंटो मेरे जागने की भगवान से प्रार्थना करती सिरहाने बैठी रही । और बार बार अपने आप को कोसती रही की जिस बच्ची से घृणा करके दूर चली गयी वो आज अपने साथ पूरा हुजूम ले कर अपने आप को नहीं बल्कि एक बेटी के जन्म को सिद्ध कर रही है |जीवन और मृत्यु के बीच निंद्रा की गहराई में समा तो गयी है साथ ही उन तमाम लोगो को सोचने में मजबूर कर रही है की किसी के रहने और न रहने के बाद की अपनी पीड़ा क्या होती है ।इन्सान तब तक ही उपेक्षा कर सकता है जब तक अहम भाव होता है ।अहम टूटने पर केवल भाव शून्यता और समानता का भाव ही रह जाता है बेटिया कभी घृणा और उपेक्षा की पात्र नहीं होती ।" बेटियाँ माता पिता की संम्मान ही नहीं जान होती है जो पीढ़ियों को समेट के जीती है ॥एक पुत्र की अपेक्षा माँ बाप के बेहद करीब होती है ।जो सभी रिश्तो को दिल से जीती भी है और निभाती भी है ।इसलिए बेटियो के जन्म को श्राप नहीं वरदान बना कर जिए।भ्रुण हत्या पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाये ।और बेटियो का उतना ही सम्मान करे जितना परिवार में एक पुत्र का किया जाता है ।
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